Sunday, November 12, 2017

फेसबुक का फंदा

"जुकरबर्ग ने एक स्त्री के अलावा किसी दूसरी स्त्री की ओर कभी देखा नहीं, इसी से खरबपति हो सके।"- जुकरबर्ग का इंटरव्यू था।श्रीमती जी ने मुस्कुराते हुए मुझे ये खबर दिखाई। मेरी प्रतिक्रिया थी कि झूठ बोलता है ये बेईमान। इन्होंने भले ही एक ही स्त्री की प्रति यौन निष्ठा रखी हो। शारीरिक रुप से एक ही स्त्री को देखा हो, लेकिन स्त्री केवल शरीर नहीं होती। उसके अलावा भी वो बहुत कुछ होती है। वो एक स्वभाव है।

इस आदमी ने अपनी पत्नी के अलावा हर स्त्री के उन स्त्रैणगुणों का शोषण किया है, जो उनके शरीर के अलावा, उनमें है। ये साहब, तन से भले एक ही स्त्री के प्रति निष्ठ रहे, लेकिन इनकी नजर, संसार के हर स्त्री के मनोविज्ञान पर थी। इन्होंने उसका ही दोहन किया। सबसे बड़ा शोषण तो जिज्ञासा, जानने की इच्छा और जलन के स्वभाव का किया। जुकरबर्ग ने इन भावनाओं को हवा दी, इन्हे भड़कया और फिर उसके ताप से कमाई की।

गपशप, गॉशिप और चुगली... हर व्यक्ति का चरित्र है, पर संसार इसे स्त्रैण गुण ज्यादा मानता है। अनुभव ऐसे ही हैं। वैसे हर पुरुष में थोड़ी स्त्री होती है। तो पुरुष भी ऐसा व्यवहार करते हैं। जुकरबर्ग ने पुरुषों के भीतर की उन स्त्रियोंपर भी नजर रखी। आज फेसबुक... व्यक्ति के इन्हीं स्तैणगुणों के चलते समाज में खलबली मचाए हुए है। उसने इसी इंसानी कमजोरियों का फायदा उठाया है। उसे ही बेचा और खरीदा है।


....स्त्री केवल शरीर के तौर पर नहीं, अपनी मनोवैज्ञानिक कमजोरियों के रूप में भी शोषित है। उनके इस गुण(अवगुण) का भी दोहन किया जाता है। एकता कपूर ने इन्हीं गुणों का शोषण कर अपना साम्राज्य स्थापित किया। बिग बॉस भी यही करके, सबसे ज्यादा कामयाबी बटोर रहा है। जुकरबर्ग इन सबसे अलग नहीं।यही बात मैंने, स्त्री विमर्श पर हो रही एक सभा के अध्यक्षीय भाषण में कही तो एक भद्र महिला एकदम से खड़ी हो गयी कि "आप ये क्या कह रहे हैं कि स्त्रियां गॉशिप करती हैं? वे बस सीरियल देखती हैं ! पर पुरुष भी तो ऐसा करते हैं। सीरियल देखते हैं, फेसबुक पर गॉशिप करते हैं।" वो बोलती रहीं... मैं सुनता। फिर जब वो शांत हुई तो समझाने की कोशिश की मैंने कि मैम! ये मैं नहीं कह रहा, जुकरबर्ग खुद ही स्वीकार चुके हैं। टीवी के प्रोड्यूसर अपनी क्रिएटिव मीटिंग में, इस पर ही विचार करते हैं कि पैसा कैसे कमाना है। टीआरपी कैसे बढ़नी है। लोगों को क्या पसंद आयेगा। तो वो गॉशिप ही टारगेट करते हैं। उसमें भी स्त्रीमन और मनोविज्ञान उनका आसान शिकार होता है। ये तरीका कामयाब भी है, लोग इससे पैसा कमा रहे हैं।

पता नहीं वो समझ पायीं या नहीं, पर अजीब ही स्थिति थी। वो भी तब, जब वो महिला, वेल इंफॉर्मड और बौधिक लग रहीं थीं । (इस पर ज्यादा नहीं बोलूंगा कि ये व्यक्तिगत हो जाएगा।) उस महिला की प्रतिक्रिया से मन क्षुब्ध हो गया कि औरतों के हक के लिए लड़नेवाले लोग औरतों की ही वास्तविकता से इतना अनभिज्ञ, अनजान कैसे हो सकते हैं।अब उसी फेसबुक के संस्थापक अध्यक्ष, शॉन पारकर ने खुलासा किया है कि फेसबुक की शुरुआत ही मनुष्य के मनोवैज्ञानिक कमजोरियों को भुनाने के लिए हुई थी। वो शुरू से ही मानव के खास तरह के मनोविज्ञान का शोषण कर रहा है। इसकी स्थापना के पीछे जो बुनियादी विचार था वो यही था कि आदमी एक दूसरे के बारे में जासूसी की हद तक जिज्ञासु होता है। तो व्यक्ति के दिमाग में घुस, उसकी मानवीय भावनाओं और कमजोरियों का दोहन करना सबसे सरल और फायदे का धंधा होगा।पारकर आगे कहते हैं कि शुरू में तो ये हमें सहज और मामूली बात लगी थी। पर तब पता ही नहीं था कि फेसबुक... एक दिन मनोवैज्ञानिक भावनाओं पर आधारित हमारे स्वभाव का इस तरह, इस हद तक शोषण करेगा... और हमारा सामाजिक व्यवहार और आचरण ही बदल देगा।

"The inventors, creators it's me, it's Mark [Zuckerberg], it's Kevin Systrom on Instagram, it's all of these people understood this consciously. And we did it anyway."

...
तो उन्होंने एक नहीं, हजारों, लाखों, करोड़ों स्त्रियों पर, अलग तरीके से नजर रखी, इसी से खरबपति हो सके।
ऐसा जुकरबर्ग ने खुद ही माना है। फेसबुक का सबसे पहला गॉशिप, हॉवर्ड के दिनों में ही था, जब सौ लोग भी नहीं जुड़े थे इससे, तभी एक छात्र ने अपनी गर्लफ्रेंड को गाली देते, उसकी निजता को फेसबुक पर शेयर कर दिया था। ये मामला हॉवर्ड में सनसनीखेज हो गया। ये खबर फैली कि रातों रात फेसबुक के... सब्सक्राइबर बढ गये।

वे बताते हैं कि हमलोग जो इनवेंटर या क्रिएटर थे, फेसबुक के लिए मैं और जुकरबर्ग थे, और इंटाग्राम के लिए केविन सिस्ट्रोम थे... हम सभी अपनी इन करतूतों के परिणाम, नतीजा और असर को अच्छी तरह समझ रहे थे... फिर भी हमने ऐसा किया।

अब असल बात ये है कि स्थिति और वास्तविक तथ्य की जानकारी अनिवार्य है। अन्यथा आप लगातार शिकार ही होते रहेंगे। क्रांति अगर होनी है तो उसे तथ्य आधारित होने की जरूरत होती है, तभी उसका वास्तविक असर होता है। नहीं तो नकली नोट पर लगाम के लिए नोटबंदी तो सरकार भी करती है... और नकली नोट अगले ही दिन बाजार में आ जाते है।


No comments: