सदियों से कहने से पहले विचार कीजिएगा... गीता सदियों पहले महान नहीं थी। महाभारत अब भी अछूत ग्रंथ है। गीता उसी का हिस्सा है।
गीता... मनीषियों की मीमांषा की उपज है। वो विरक्त करती है। हमारी परम्परा आसक्ति की थी। हम गृहस्थ लोग थे, किसान। जड़, जीवन, जमीन से आसक्ति ही हमारी जिंदगी का स्रोत थे। गीता इसके विरुद्ध काम करती थी। इसी से गृहस्थों ने गीता को कभी स्वीकार नहीं किया, कभी नहीं अपनाया। गीता निर्गुन भजनों की तरह मृत्यू के शोक से उबरने का साधन भर रही थी।
किसान हमेशा कारण और परिणाम की शर्तों पर काम करता है। गृहस्थ हमेशा यही तरीका अपनाता है। गीता कहती है नतीजे की फिक्र मत करो. काम करो। किसान फसल के लिए बीज बोता है। फसल की इच्छा के बिना वो बीज कैसे बो पाता। इसी से गीता किसानों के जीवन के विरुद्ध के नियम बताती थी।
आप अपने पूरखों के जीवन को ठीक से देखिएगा... उम्मीद है कि वो किसान ही होंगे, किसान... या खेती से जुड़े जीवनों से ही सरोकार होगा उनका। ये सदियों पहले नहीं, केवल कुछ सौ साल पहले की बात होगी... आपको पता चलेगा... कि उनके हाथ में गीता नहीं थी। तो गीता सदियों से हमें रास्ता नहीं दिखाती रही है। उसकी जरूरत ही नहीं थी...
गीता थी... बस थी, उसके साथ अहंकार या कुंठा नहीं जुड़ा था।
दरअसल वो कुरान के खिलाफ खड़ा करने रवैये से महान साबित की जाने लगी। क्योंकि कुरान और बाइबिल की तरह हमारा कोई धर्मग्रंथ नहीं था। हमारा आचरण ही हमारा धर्म और हमारे लिए हदीस थे। हमें किसी तरह के ग्रंथ की जरूरत नहीं थी। हम चितखोपड़ी थे, दुनिया से एकदम अलग चलने वाले लोग। ये बात ही दुनिया को हमारी तरफ खींचती थी, ये बात ही उन्हें परेशान करती थी।
लेकिन जो लोग खेती से अलग हो कुछ और काम करने लगे, जिनका सामना इस्लाम और इसाइयत से हुआ उन्हें लगा कि हमारा तो कोई ग्रंथ ही नहीं है, ये कुठा की बात हो गई उनके लिए, तो हमारे महान लोगों ने गीता को कुरान के खिलाफ खड़ा कर दिया। हमपर इस्लाम और ईसाइयत का प्रभाव पड़ गया। हम जो दुनिया से अलग थे, दुनिया के बाकी लोगों की तरह हो गए। ये बदलाव पूरी नहीं हुई, और कुंठा हमारा स्वभाव रह गई... उसने बड़ा सर्वनाश किया...
जब हम कुंठित नहीं थे, तबतक हमने बहुत चीजों में महारत हासिल की थी। हमारी अपनी खोजें थीं। हमारे अपने आविष्कार थे। हमारी अपनी तकनीक थी। हमारी कुंठा ने हमपर वज्राघात किया, हम कुंद और ठूंठ हो गए... कुंठा हमेशा ये करती है.... ठूंठ बना देती है।
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