Monday, September 21, 2015

सनातन नहीं है गीता

 
सदियों से गीता...
सदियों से कहने से पहले विचार कीजिएगा... गीता सदियों पहले महान नहीं थी। महाभारत अब भी अछूत ग्रंथ है। गीता उसी का हिस्सा है।

गीता... मनीषियों की मीमांषा की उपज है। वो विरक्त करती है। हमारी परम्परा आसक्ति की थी। हम गृहस्थ लोग थे, किसान। जड़, जीवन, जमीन से आसक्ति ही हमारी जिंदगी का स्रोत थे। गीता इसके विरुद्ध काम करती थी। इसी से गृहस्थों ने गीता को कभी स्वीकार नहीं किया, कभी नहीं अपनाया। गीता निर्गुन भजनों की तरह मृत्यू के शोक से उबरने का साधन भर रही थी।

किसान हमेशा कारण और परिणाम की शर्तों पर काम करता है। गृहस्थ हमेशा यही तरीका अपनाता है। गीता कहती है नतीजे की फिक्र मत करो. काम करो। किसान फसल के लिए बीज बोता है। फसल की इच्छा के बिना वो बीज कैसे बो पाता। इसी से गीता किसानों के जीवन के विरुद्ध के नियम बताती थी।

आप अपने पूरखों के जीवन को ठीक से देखिएगा... उम्मीद है कि वो किसान ही होंगे, किसान... या खेती से जुड़े जीवनों से ही सरोकार होगा उनका। ये सदियों पहले नहीं, केवल कुछ सौ साल पहले की बात होगी... आपको पता चलेगा... कि उनके हाथ में गीता नहीं थी।  तो गीता सदियों से हमें रास्ता नहीं दिखाती रही है। उसकी जरूरत ही नहीं थी...

गीता थी... बस थी, उसके साथ अहंकार या कुंठा नहीं जुड़ा था।
दरअसल वो कुरान के खिलाफ खड़ा करने रवैये से महान साबित की जाने लगी। क्योंकि कुरान और बाइबिल की तरह हमारा कोई धर्मग्रंथ नहीं था। हमारा आचरण ही हमारा धर्म और हमारे लिए हदीस थे। हमें किसी तरह के ग्रंथ की जरूरत नहीं थी। हम चितखोपड़ी थे, दुनिया से एकदम अलग चलने वाले लोग। ये बात ही दुनिया को हमारी तरफ खींचती थी, ये बात ही उन्हें परेशान करती थी।

लेकिन जो लोग खेती से अलग हो कुछ और काम करने लगे, जिनका सामना इस्लाम और इसाइयत से हुआ उन्हें लगा कि हमारा तो कोई ग्रंथ ही नहीं है, ये कुठा की बात हो गई उनके लिए, तो हमारे महान लोगों ने गीता को कुरान के खिलाफ खड़ा कर दिया। हमपर इस्लाम और ईसाइयत का प्रभाव पड़ गया। हम जो दुनिया से अलग थे, दुनिया के बाकी लोगों की तरह हो गए। ये बदलाव पूरी नहीं हुई, और कुंठा हमारा स्वभाव रह गई... उसने बड़ा सर्वनाश किया...

जब हम कुंठित नहीं थे, तबतक हमने बहुत चीजों में महारत हासिल की थी। हमारी अपनी खोजें थीं। हमारे अपने आविष्कार थे। हमारी अपनी तकनीक थी। हमारी कुंठा ने हमपर वज्राघात किया, हम कुंद और ठूंठ हो गए... कुंठा हमेशा ये करती है.... ठूंठ बना देती है।
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Thursday, September 10, 2015

बड़बोले लोग

अतिश्योक्ति, बड़बोलापन कब और कैसे आया हमारे आचरण में?
हमारी महान सभ्यता...!
किसने बताया हमें? कब पता चला कि हमारी सभ्यता महान थी?
हमारी महान संस्कृति..!
कब हुई ये महान? किसके कहने से हुई थी? हमारी महानता का सर्टिफिकेशन कब हुआ?
खुद पर गर्व करने से पहले, खुद को महान बताने से पहले गौर कीजिए कि ये भाव आपमें किसने और कब भरा?
कभी लड़ाया है सांढ़? साढ़ नहीं तो बोतू (बकरा)? मुर्गा ही?
कुश्ती तो देखी होगी कभी? ये ना सही कोई तो प्रतियोगिता देखी होगी?

प्रतियोगिता! सही शब्द है जानने के लिए अपनी महानता के उदभव को। इसी में छिपी है आपकी महानता।
बढ़ जाओं, चढ़ जाओ, भिड़ जाओ, शाबाश... हारना नहीं है... तुम जीतोगे...
इस तरह के ये तरीके, सामनेवालों के विरुध खुद में पैदा हुए कुंठा पर काबू पाने की कोशिश है।

महानता का अहंकार, दरअसल कुंठा का नतीजा है। दूसरे.. आपको खुद से बड़ा दिख रहे हैं। सामने खड़ा व्यक्ति आपको अपने से ज्यादा समर्थ दिख रहा तो आपकी कुंठा आपको, खुद को उससे बड़ा सोचने को विवश कर रहा। ये संतोष देगा आपको। खुद को बड़ा पाने का संतोष नहीं, सामनेवाले को अपने से नीचा देख, सोच पाने का संतोष। ये झूठ है। ये झूठा विश्वास है।

जिस क्षण आपने दूसरे को नीचा देखा, उसी पल आपकी महानता नष्ट हो गई। और अब ये महानता तबतक आप पा नहीं सकेंगे, जबतक कि आप अपनी कुंठा पर विजय नहीं पा लेते। महानता, दूसरे पर जय पाने से नहीं, खुद को जीत लेने से आती है।

सम्राट अशोक जब तक विजेता थे... दुनिया जीतते रहे, तब तक वो निष्ठुर, निर्दयी राजा थे। उन्हें महान तब समझा गया, माना गया... जब उन्होंने दुनिया छोड़, खुद पर जीत हासिल की।

हम सत्यानवेशी रहे हैं... सच की खोज करनेवाले लोग।  झूठ हमारा सर्वनाश करेगा, ये हमारे पूर्वज जानते थे।
विजेताओं ने हम पर आक्रमण किया, लेकिन वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाए, उल्टे हमसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। हमारा असर उनपर होने लगा। लेकिन कुछ लोग जो विजेताओं की तरह ही हम पर राज करना चाहते थे, उन्होंने विजेताओं से सीख ले ली। वो विजेता, जो हमसे प्रभावित हो हमतक चले आए थे, हमारे लोग, उन लोभी विजेताओं के प्रभाव में आ गये। उन्हें विजेताओ का रवैया सही और ज्यादा सही लगा। ये भाव आया नहीं, कि वो कुंठा से भर गए। ...और उन्होंने सर्वनाश कर दिया। उनकी कुंठा, शुरूआत थी... हमारी महानता की शुरूआत।

वो हमें कुंठित करते गए, हम महान होते गए, उन्होंने हममे और कुंठा भरी, हम और जोर से महान हो लिए। ...और हम गुलाम हो गए, हमारी कुंठा ने हमें, विजेताओं का गुलाम बना दिया।
आहिस्ता आहिस्ता हमारी असली महानता का सच खत्म हो गया और हम विजेताओं के खिलाफ स्थापित झूठी महानता की चादर में लिपटी सभ्यता रह गए।
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