Wednesday, July 8, 2015

नो राईट टर्न!




हेमा मालिनी बोलती हैं कि सड़क हादसे में बच सकती थी बच्ची जो उसके पिता ने ट्रैफिक नियमों का पालन किया होता।

अब सवाल है कि इस देश के कितने लोगों को ट्रैफिक के नियम पता हैं?
सिवाए इसके कि लाल बत्ती से रुकना है, हरी से चलना है और सड़क के बायीं तरफ चलना है(ये नियम अ्ब काम नहीं करता)। दाहिने से ओवर टेक करना है( ये नियम भी अब काम नहीं करता) पूरे देश में चलन हो गया है कि लोग अचानक से बाई त...रफ से निकल कर आपके सामने आ जाएंगे और आपके दाहिने के कट को मुड़ जाएंगे।

टी प्वाइंट पर मुख्य सड़क और जुड़नेवाली सड़क के वाहनों के लिए कुछ कायदे हैं। वैसे ही गोलचक्कर पर घूमने के भी नियम हैं। पीली बत्ती के ब्लिंक करने की रफ्तार के भी मतलब हैं। वो ट्रैफिक सिग्नल होंते हैं लाइट नहीं, सिग्नल का मतलब ही इशारा है।

हेमा मालिनी की कार सीधी आ रही थी। उस बच्ची की पिता ने टी प्वांट अपनी कार दाहिने तरफ मोड़ दी, सामने से आती कार, आल्टो के बोनट के बाए फेंडर से टकरा गई। बाई तरफ का पहिया और दरवाजा धंस गया। जाहिर है बच्ची आगे की सीट पर बैठी होगी, जिसकी वजह से उसे ज्यादा चोट आई।

दुनिया भर में नियम है कि बच्चों को अगली सीट पर नहीं बैठने दे... लेकिन भारत के लोग तो अपने बच्चों से कुछ ज्यादा ही प्यार करते हैं. वो अपनी उपलब्धियों को बच्चों के सामने ऐसे पेश करते हैं, कि ये शान की बात है।

दिक्कत क्या है यहां कार खरीद लेना, सुविधा नहीं, शान की बात है, महान उपलब्धि हैं। ये शान बच्चों में भी आती है। और वो अगली सीट पर बैठने की जिद करते हैं। कुछ माता पिता भी दुलार में बच्चों को अगली सीट पर बैठाते हैं। जो एकदम ही अमानवीय है।

बच्चे अपनी सुरक्षा नहीं कर सकते। वो जबतक एकदम साफ नहीं हो, खतरे को भांप नहीं सकते। इसी से किसी भी तरह के हादसे में उन्हें ज्यादा नुकसान पहुंचता है। लेकिन अगर बच्चों ने खतरा भांप लिया है तो, उनमें उस खतरे बच जाने की कुदरती काबीलियत होती है। बच्चों का नुकसान खतरे को समझ नहीं पाने से ही होता है। अगली सीट पर वैसे व्यक्ति को ही बैठना चाहिए, जो सजग हो और दूर तक देख सके। दूर तक मतलब सामने सड़क पर हो रही सारी गतिविधियों पर जिसकी नजर हो और वो संभावित हरकतों को भी समझ सके। बच्चों में ये बात नहीं होती। वो सीखनेवाले होते हैं सो घटना होने के प्रत्यक्षदर्शी होने और उसके घटने चुकने के बाद, वो उससे सीखते हैं।

एक बच्चे को अगर किसी तरह की चोट लगने के कारण की समझ नहीं हो पाती है तो वो उस काम को कभी करना ही नहीं चाहता। उसे पूरा लगता है कि चोट फिर लग जाएगी। लेकिन अगर उसे समझ में आ गया है कि ऐसे करने से, इस तरह की चोट लगती है, उसी काम में उसी तरह की चोट उसे दोबारा कभी नहीं लगती। तो किसी भी तरह के हादसे की संभावना में बच्चों के पास बड़ों से थोड़ा ज्यादा वक्त होना चाहिए, ताकि वो परिस्थिति को समझ सकें, उसे comprhand कर सकें।

सड़क का सबसे अहम कायदा है, एकदम बुनियादी। अगर आप दाहिने तरफ से ड्राइव करने वाली (Right hand driving) व्यवस्था में हैं तो अपने से दाहिनी तरफ की गाड़ियों को प्राथमिकता दें। इसी से हमारे यहां दाहिनी तरफ से पास लेने देने का चलन और नियम है। लेकिन ट्रैफिक नियमों अपने से दाहिने आती गाड़ियों के प्रति सबसे ज्यादा अनदेखी होती है, और हादसों के करीब-करीब 95 फीसदी वजह यही होती हैं। हर हादसे में यही बात होती है। आप सहीं भी तो भी सामनेवाले ने दाहिनी तरफ ध्यान नहीं दिया होता है, उसकी अनदेखी की होती है।

20-22 घोड़ों की ताकत वाले इंजन को सौ की रफ्तार से दौड़ानेवाले लोग इसकी अहमियत को अंगूठा दिखाते रहते हैं।

बच्ची की मौत में भी यही हुआ। आल्टो ड्राइवर ने अपनी दाहिनी तरफ से आनेवाली कार की अनदेखी की, बिना उसे बताए ही मुड़ गया।
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Friday, July 3, 2015

जिसने पाप ना किया हो... जो पापी ना हो!

एक पते की बात है, एकदम रहस्य की बात...

वो ये कि सबके सब बंदर के खानदान से हैं... उससे पहले ठंडे खून लेकिन चुपके से धोखेबाजी में माहिर मगरमच्छ थे... उससे पहले अपनी ही प्रजाति की छोटी और कमजोर नस्लों को खा जानेवाली मछली....उससे पहले बिना शक्ल सूरत वाले आमीबा जैसे जीव... जिसकी कोई पहचान तक नहीं होती। ये सारे गुण और इससे और भी बहुत ज्यादा कुछ ले... ये सारे इस धरती की छाती फाड़े हुए हैं।

आदमी पैदा ही इस तरह हुआ है.... एक आदमी की बात काहे कर रहे? एक खानदान की बात क्यों कर रहे? यहां तो खून में ही जानवरों की मिलावट है.... सबके खून में। पीछे जाईए तो अमीबा तक... और फिर आगे बढ़िए तो समझ आएगा किसके खून में कहां कौन सा गुणसूत्र ज्यादा भारी हो आया और वो इंसान क्यों मगरमच्छ और मछली सा व्यवहार कर रहा है।

यहां... देवता और दानव सब एक ही बाप की औलाद हैं... एक ही मां की संतान है। दुर्योधन और युधिष्ठिर सब एक ही खानदान से हैं।

...और मति तो युधिष्ठिर की भी मारी जाती है। भाई की पत्नी को अपनी बना लेता है, फिर इसी पत्नी को दांव पर लगा देता है, जुए में जीत जाने की लालच और अहंकार में महा विवेकशील वो भी मतिभ्रष्ट हो जाता है। दुर्योधन और महाभारत के लिए एक साफ खाली जमीन तैयार करने में वो भी बराबर का हिस्सादार होता है...तो साफ है कि सब एक ही खानदान से हैं।