Tuesday, November 24, 2015

ये ऐसा ही देश है...



किसी मुसलमान को इस देश के बारे में बोलने का हक नहीं।  है क्या?

1947 में मुसलमानों की एक पूरी खेप, देश छोड़कर जा चुकी है,  तो भारत की जमीन को अपना समझ यहां रह गए मुसलमान,  देश छोड़ने की बात भी नहीं कर सकतेक्योंकि साबित है कि मुसलमान तो देश छोड़कर जा सकते हैं... 

और वो जो बिना साबित किए ही देश छोड़ कर जा चुके हैंउनके बारे में क्या ख्याल हैब्रिटेन का नागरिककांग्रेसी छोरा तो इस देश में रह कर भी विदेशी है। बहुत से लोग और भी हैं जो बेहतर हालत की तलाश में देश छोड़कर जा चुके हैं। 

कुछ ने तो विदेशी नागरिकता भी ले ली है। वो दूसरे देशों में राजनीतिक और वैज्ञानिक हिस्सेदारी कर रहे हैं... और भारत उनपर गर्व से दावेदारी करता है। कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स भारत छोड़ कर चली गईं  इसी से वे... वो सब कर पाईं, जो वो कर पाईं। वे यहां होतीं तो किसी सरकारी शोध संस्थान के दफ्तर में सरकार के अनुदान नहीं मिलने का रोना रोतीं। इस देश के रीसर्च इंस्टीट्यूट में लाखों वैज्ञानिक यही कर रहे हैं। उनके पास बेहतर मौका और सुविधाएं नहीं हैं। बेईमानी, भ्रष्टाचार और झूठ ने यहां की हालत बेहद बुरी कर रखी है। 

विदेश जाकर हमारे महात्मा मोदी, भारत छोड़ चुके, जिन लोगों से बेशर्मी से पैसा जुटा रहे हैं, वे अप्रवासी भारतीय दरअसल, देश छोड़कर चले गए लोग हैं। कभी पूछा उनसे कि वो देश छोड़कर क्यों चले गए

कुछ ने तो विदेशी नागरिकता भी ले ली है। वो दूसरे देशों में राजनीतिक और वैज्ञानिक हिस्सेदारी कर रहे हैं... और भारत उनपर गर्व से दावेदारी करता है। कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स भारत छोड़ कर चली गईं  इसी से वे... वो सब कर पाईं, जो वो कर पाईं। वे यहां होतीं तो किसी सरकारी शोध संस्थान के दफ्तर में सरकार के अनुदान नहीं मिलने का रोना रोतीं। इस देश के रीसर्च इंस्टीट्यूट में लाखों वैज्ञानिक यही कर रहे हैं। उनके पास बेहतर मौका और सुविधाएं नहीं हैं। बेईमानी, भ्रष्टाचार और झूठ ने यहां की हालत बेहद बुरी कर रखी है।

कभी पूछा उनसे कि वो देश छोड़कर क्यों चले गएबिलकुल वही बात और वजह उनकी भी थी, जो एक मुसलमान आमिर खान कह रहा है। 

तो विदेशों में बेहतर जीवन जी रहे लोग, दरअसल भारत छोड़कर चले गए लोग ही हैं। वो लोग... भारत की जमीनयहां की निराशाजनक हालात से हताश होकर, यहां से गए है। जैसे बिहारीबिहारी से बाहर जाते हैं। जैसे मारवाड़ीराजस्थान से बाहर गए थे। जैसे पंजाबी, पंजाब से बाहर आए। 

हालात से निराश होकर भी, जो लोग जमीन नहीं छोड़ते, वो मराठीमध्य प्रदेश और तेलुगू किसानों की तरह आत्महत्याएं करते हैं। खेती की हालत बिहार में भी अच्छी नहींबाकी राज्यों की तरह ही और कहीं-कहीं तो उनसे भी बदतर हैलेकिन वहां किसान आत्महत्या नहीं करते, क्योंक्योंकि पलायन उनका हथियार है। वो जिस हालात को बदल नहीं सकतेउससे निराश हो आत्महत्या नहीं करते, वहां से निकल जाते हैं। कभी सोचा कि किसान आत्म-हत्या क्यूं करता है?

एक वक्त आता है कि हालात में सुधार की गुंजाइश ही नहीं रहती है। सुधार किसी एक के बूते की बात, तो नहीं ही रहती है। किसी को मेरी बात बकवास लग रही हो तोवो माई का लाल... यमुना का पानी पी कर दिखाए। अपनी दस साल की बच्ची को भारत में किसी जगह... अकेले छोड़कर दिखाए ।  

एक चोर पकड़ा जाए तो उसकी जान लेने सैंकडों लोग जमा हो जाकर उसे पीट-पीट कर मार देंगे। गाय के नाम पर सैंकड़ों लोग एकजुट हो जाएंगे। लेकिन उसी गाय को बेहतर जीवन देने की बात हो... तो उनको अपना घर-परिवार और जिम्मेदारियां याद आने लगती है। गंगा साफ करनी हो... यमुना का पानी, बिसलरी जितना साफ कर लेना हो तो उनकी फटने लगती है।

साफ करना तो दूर... हरामखोर अपने घर के देवताओं की गंदगी... फेंस लगा देने के बाद भी... बीवी-बच्चे समेत यमुना और गंगा के पुलों पर खड़ा होकर नदी में फेंकते रहेंगे। कमाल ये है कि आनेजाने वाले महान देश-भक्तों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। 

और आपको लगता है ये देश रहने लायक है?
ये कीड़ों का देश है।  गू में जैसे वो बिलबिलाते रहते हैं, वैसे ही पिल्लू जैसे लोगों का देश।
भ्रष्टाचार के खिलाफ नाटक करनेवाले लोगों से पूछिए कि वे अपना काम निकालने के लिए सरकारी दफ्तरों में पैसे क्यों देते हैं। केजरीवाल नाम का चूतियापा, किस चुतियापे की पैदाईश हैवो तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ा था, और अब पक्का है कि अपना टर्म पूरा करते-करते वो, देश की भ्रष्ट व्यवस्था का काबिल, कामयाब और बाकी लोगों की तरह ही घाघ राजनेता हो जाएगा।

देशभक्ति का नाटक मत कीजिए... ये देश रहने लायक नहीं है... सवा अरब नागरिकों मे से तीन चौथाई से भी ज्यादा लोगों की यही चाह है कि वो अमेरिका, यूरोप, जापान, सिंगापुर, खाड़ी देशों में जाकर बस जांए। वो तो मजबूरी है कि लोग यहां फंसे हुए हैं। अपने सीने पर हाथ रखकर सोचिए कि क्या आप भी सपरिवार, माता-पिता बाल-बच्चों समेत यूरोप, कनाडा, अमेरिका में नहीं बस जाना चाहेंगे?

ईमानदारी से विचार कीजिएगा कि -  क्या भारत की राजनीति, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक रवैये और प्रचलनों से आप नाखुश हो, कर कई बार ये नहीं कह चुके हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकताहर इंजीनियर, हर डॉक्टर, हर प्रोफेसर, हर वैज्ञानिक भारत छोड़ देना चाहता है... हर छात्र, हर बच्चा चला जाना चाहता है यहां से... क्यों?

किसानों के पास भी उपाय नहीं है, वर्ना वो भी अमेरिका में जाकर खेती करते... जरा अमेरिकी किसानों की दशा और सुविधाएं देखिए। क्या फर्क है भारत और अमेरिका मेंदरअसल प्राकृतिक रूप से भारत... अमेरिका से ज्यादा समृद्ध और धनी है। ...लेकिन लोग यहां के चूतिया हैं और नीति-निर्धारक तो चूतियों की फौज है। 

हां ये देश चूतियों का देश है तभी...
कोई ईमानदार इंजीनियर अपनी ईमानदारी के लिए मारा जाता है। तभी किसी पत्रकार को सच बोलने के लिए जान देनी पड़ती है। तभी कोई पुलिस अधिकारी को सच्चाई का साथ देने की सजा दी जाती है। तभी कोई हमारखोर अपराधी जेल से देश चलाता है। 

ये चूतियों का देश है और आमिर खान ने सही कहा है... 
हर विवेकशील पिता को अपने बच्चे के लिए यहां असुरक्षा और अनिश्चितता के अलावा कुछ नहीं मिलता। सोचिएगा जरा कि क्या आपको लगता है कि आपकी बेटी सुरक्षित है यहां? उसका भविष्य सुखमय, चिंता रहित और सुनिश्चित
तभी को लालू और मोदी यहां नेता चुने जाते हैं। हमें अखिलेश, मायावती, ममता, जयललिता, केजरीवाल जैसों में चुनाव करना पड़ता है। तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव हमारा मंत्री हो जाता है। तभी तो स्मृति ईरानी, अरुण जेटली यहां मंत्री बन देश का भाग्य तय करते हैं। तभी व्यापम् में सैकड़ों लोग मरते हैं।

तभी राजीव गांधी जैसे व्यक्ति को केवल सहानुभूति में प्रधानमंत्री बना दिया गया। तभी तो उनकी विधवा सोनिया गांधी जैसी औरत ने दस बरसों तक, एक चापलूस मुसलमान, अहमद पटेल के बूते देश को भ्रष्टाचारियों के हाथ बंधक बनाए रखा।

हां ये देश चूतियों का देश है तभी...
कोई ईमानदार इंजीनियर अपनी ईमानदारी के लिए मारा जाता है। तभी किसी पत्रकार को सच बोलने के लिए जान देनी पड़ती है। तभी कोई पुलिस अधिकारी को सच्चाई का साथ देने की सजा दी जाती है। तभी कोई हमारखोर अपराधी जेल से देश चलाता है।

ये चूतियों का देश है और आमिर खान ने सही कहा है...
हर विवेकशील पिता को अपने बच्चे के लिए यहां असुरक्षा और अनिश्चितता के अलावा कुछ नहीं मिलता। सोचिएगा जरा कि क्या आपको लगता है कि आपकी बेटी सुरक्षित है यहां? उसका भविष्य सुखमय, चिंता रहित और सुनिश्चित
तभी को लालू और मोदी यहां नेता चुने जाते हैं। हमें अखिलेश, मायावती, ममता, जयललिता, केजरीवाल जैसों में चुनाव करना पड़ता है। तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव हमारा मंत्री हो जाता है। तभी तो स्मृति ईरानी, अरुण जेटली यहां मंत्री बन देश का भाग्य तय करते हैं। तभी व्यापम् में सैकड़ों लोग मरते हैं।

तभी राजीव गांधी जैसे व्यक्ति को केवल सहानुभूति में प्रधानमंत्री बना दिया गया। तभी तो उनकी विधवा सोनिया गांधी जैसी औरत ने दस बरसों तक, एक चापलूस मुसलमान, अहमद पटेल के बूते देश को भ्रष्टाचारियों के हाथ बंधक बनाए रखा।

आपको लगता है कि आप बीमार पड़ें और आप जहां भी हैं वहां ही आपका सही इलाज हो पाएगा?
पिछले दो महीने के भीतर अपने ही रिश्ते-नाते में चार ऐसे मामले आए हैं, जहां चूतिए डॉक्टरों ने मरीज को कुछ नहीं होने के बाद भी, उनके दस से पंद्रह लाख खर्च करवाए। पैसों के लिए गलत दवाएं और इलाज दे देकर ठीक-ठाक व्यक्ति को मौत के मुंह तक पहुंचा दिया। एक मामले में तो मर गए मरीज की लाश का भी इलाज करते रहे और उसके सवा लाख रुपए लिए। ये केवल चिकित्सा ही नहींशिक्षा व्यवस्था की यही दशा है। राजनीति की यही हालत है। पर्यावरण की यही दशा है। उद्योग और खेती में भी यही हालत है...

सबको मालूम है... सब जानते हैं कि समस्याएं हैं और ऐसी हैं, इस तरह से हैं... फिर भी ये सब ठीक नहीं हो रहा है.... काहे?  काहे कि ये चूतियों का देश है।

चूतिया राजनेताओं के चूतियापे पर चूतिया जनता लड़-मरती है।

चूतिया नौकरशाहों के चूतियापे की कीमत चूतिया जनता चुकाती रहती है। चूतिया नीति-निर्धारकों के चूतियापे की सजा मासूम बच्चे भोगते रहते हैं। चूतिया बाबाओं के चूतियापे में फंस भोले-भाले धर्मनिष्ठ लोग, चूतिया बने रहते हैं। चूतिया राजनेता और रक्षा अधिकारी अपने चूतियापे में बरगला कर ईमानदार और देश भक्त सैनिकों की जान लेते रहते है। 
आंतकवाद, भ्रष्टाचार, बेईमानी का चूतियापा क्यों हैं यहां चूतिया राजनेताओं के चूतियापे पर चूतिया जनता लड़-मरती है। चूतिया नौकरशाहों के चूतियापे की कीमत चूतिया जनता चुकाती रहती है। चूतिया नीति-निर्धारकों के चूतियापे की सजा मासूम बच्चे भोगते रहते हैं। चूतिया बाबाओं के चूतियापे में फंस भोले-भाले धर्मनिष्ठ लोग, चूतिया बने रहते हैं। चूतिया राजनेता और रक्षा अधिकारी अपने चूतियापे में बरगला कर ईमानदार और देश भक्त सैनिकों की जान लेते रहते है।आंतकवाद, भ्रष्टाचार, बेईमानी का चूतियापा क्यों हैं यहां चूतिया राजनेताओं के चूतियापे पर चूतिया जनता लड़-मरती है। चूतिया नौकरशाहों के चूतियापे की कीमत चूतिया जनता चुकाती रहती है। चूतिया नीति-निर्धारकों के चूतियापे की सजा मासूम बच्चे भोगते रहते हैं। चूतिया बाबाओं के चूतियापे में फंस भोले-भाले धर्मनिष्ठ लोग, चूतिया बने रहते हैं। चूतिया राजनेता और रक्षा अधिकारी अपने चूतियापे में बरगला कर ईमानदार और देश भक्त सैनिकों की जान लेते रहते है।

आंतकवाद
, भ्रष्टाचार, बेईमानी का चूतियापा क्यों हैं यहांकाहे कि ये चूतियों का देश है। 
यहां एक डीजीपी कहता है कि अपराध नहीं रोके जा सकते हैं। बलात्कार पीड़िता की फरियाद के जवाब में एक अहंकारी मंत्री कहता है कि ऐसे अपनी इज्जत उछालोगी को समाज को क्या मुंह दिखाओगी।
 

ये चूतियों का देश नहीं है क्या?अब ये मत कहिएगा कि ये तो हर देश में हैं... तो हर देश में तो अच्छी चीजें भी है,  बेहतर स्वास्थ, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा... तो वो काहे नहीं है यहां। उसकी नकल क्यों नहीं होती... जो चूतियापे की नकल और उसमें बराबरी का तर्क देंगे?  

मैं भी इन्हीं चूतियों जैसा... चूतियापे में फंसा हूं। जी तो करता रहा है कि
 श्रीकृष्ण की महाभारत करवा, इस पूरे देश को श्मशान बना, किसी जंगल में मारा जाऊं। ताकि फिर से नई फसल हो... नया सूरज निकले, नया सवेरा हो। पर भगवान नहीं हूं, सो चूतिया ही हूं। 

हर गांव के लोग शहर चले आए हैं... क्यों
मैं भी इन्हीं चूतियों जैसा... चूतियापे में फंसा हूं। जी तो करता रहा है कि
 श्रीकृष्ण की महाभारत करवा, इस पूरे देश को श्मशान बना, किसी जंगल में मारा जाऊं। ताकि फिर से नई फसल हो... नया सूरज निकले, नया सवेरा हो। पर भगवान नहीं हूं, सो चूतिया ही हूं।

हर गांव के लोग शहर चले आए हैं... क्यों
?अपने गांवों के बारे में क्या राय है उनकीबिलकुल वही राय, जो आमिर खान की देश के बारे में हैं। गांव छोड़ चुके सारे गांववाले, और जो गांव में रह गए हैं वो भी.... सब एक सुर में एक ही बात कह रहे हैं कि गांव अब मर गए हैं, वहां कोई सुविधा नहीं, सहूलियत नहीं, जीवन नहीं. मौका नहीं, तरक्की नहीं। कुछ भी नहीं। 

वैसे में सवा अरब की आबादी में
 गिनकर केवल सौ चित-खोपड़ी लोग मिलेंगे आपको, जो गांवों को और हालात को खुशहाल बनाने में लगे हुए हैं। 1,30.00,00.000 में 100.... क्या अनुपात है।
एक बाल्टी में सवा अरब छेद कर दीजिए और उसमें से एक छेद जितना ही बारीक
, सौ और नए छेदकरउनके जरिए बाल्टी में पानी भरने की कोशिश कीजिए। है औकात बाल्टी भर लेने कीकर पाएंगेहो पाएगातो झूठ का चुतियापे का तर्क मत दीजिएगा। 

देश की दशा आईसीयू में पड़े मरीज की तरह है
, जो ऑक्सीजन के सहारे जिंदा भर है। पर आईसीयू के बेडपर जिंदा आदमी का जीवन, जीवन नहीं होता। आमिर ने सही कहा है। 

अब कश्मीर का कोई शरणार्थी पंडित आमिर के खिलाफ बोले तो वो पूर्वाग्रहित है। सजा भोग रहा व्यक्ति न्याय
 की बात नहीं, बदले की बात करेगा। अनुपम खेर वही हैं। परेश रावल तो बीजेपी के सांसद है। आमिर की बात बीजेपी, कांग्रेस के विरुद्ध नहीं, उन्हें ये बात अपने खिलाफ लग रही है। लेकिन सच... बीजेपी या कांग्रेस के खिलाफ नहीं है। सच दरअसल इस देश, इस समाज के ही खिलाफ है।

सच अगर कड़वा लग रहा है
, तो उस सच को नकारिए मत, डिनाई मत कीजिए, उसे जस्टिफाई मत कीजिए... उसे बदलिए । पर ऐसा होगा नहीं क्योंकि... 

मुझे काऊंटर करने के पहले
, अपने कॉलर को ठीक से चेक कीजिएगा कि वहां मैल नहीं हो... गिरबां में झांक लीजिएगा अपने, तब ही बोलिएगा, हां ! देश की दशा आईसीयू में पड़े मरीज की तरह है, जो ऑक्सीजन के सहारे जिंदा भर है। पर आईसीयू के बेडपर जिंदा आदमी का जीवन, जीवन नहीं होता। आमिर ने सही कहा है। अब कश्मीर का कोई शरणार्थी पंडित आमिर के खिलाफ बोले तो वो पूर्वाग्रहित है। सजा भोग रहा व्यक्ति न्याय की बात नहीं, बदले की बात करेगा। अनुपम खेर वही हैं। परेश रावल तो बीजेपी के सांसद है। आमिर की बात बीजेपी, कांग्रेस के विरुद्ध नहीं, उन्हें ये बात अपने खिलाफ लग रही है। लेकिन सच... बीजेपी या कांग्रेस के खिलाफ नहीं है। सच दरअसल इस देश, इस समाज के ही खिलाफ है।सच अगर कड़वा लग रहा है, तो उस सच को नकारिए मत, डिनाई मत कीजिए, उसे जस्टिफाई मत कीजिए... उसे बदलिए । पर ऐसा होगा नहीं क्योंकि...ये तो चूतियों के द्वारा, चूतियों के खातिर, चूतियों के लिए, चूतियों पर शासित... चूतियापे से भरा, चूतियों का देश है। तभी तो चूतिया लोगों ने मोदी से प्रचार करवाकर, बिहार में चूतियों की सरकार बनवा दी और अब उन्हीं बिहारियों को चूतिया पूकार रहे हैं। मुझे काऊंटर करने के पहले, अपने कॉलर को ठीक से चेक कीजिएगा कि वहां मैल नहीं हो... गिरबां में झांक लीजिएगा अपने, तब ही बोलिएगा, हां !


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