Monday, February 29, 2016

काश! खेत बातें सुनते


उम्मीद, शुरूआत और बेहतरी के आश्वासनों वाले भाषण में अब भरोसा नहीं रहा।
काश कि गांव में पौधों के आगे 'पानी' कह देने से वो खुश हो जाते।
काश कि केवल ये कहने से फसलें खूब उपज जातीं कि हां तुम्हे खूब पौष्टिक और मिनरलों से पुष्ट खाद दूंगा। 

काश कि किटाणु केवल ये कहने से मर जाते कि भाग जा नहीं तो दवाएं छिड़क दूंगा। 

काश कि सूखी जमीन को दिखा बादल से ये कह दिया जाता कि बरस जा, सरकार ने कहा है, और वो मूसलाधार बरस जाते। 

काश कि लहलहाते खेत ये कहने से फलियों से भर जाते कि तुम भारत की फसलें हो... हमें इस देश को खुशहाल बनाना है। 

काश कि किसान की फसल बस 'कट जा' कहने से कट जातीं और बोरियों में भर जातीं। 

काश की उपज की कीमत किसान तय कर सकता।
काश कि किसान फसलों से कह सकता कि 'रूपया फल जा' और फसल रुपयों से भर जातीं। 

काश कि किसान अपने खांसते बच्चे से ये कहता कि ठीक हो जा और बच्चा स्वस्थ हो हंसने लगता। 

काश कि वो अपने बूढ़े मां बाप या बीमार पत्नी से कहता कि अब हो गया और वो कमजोरी और कुपोषण से मुक्त तंदुरुस्त हो उनके साथ खेतों में काम पर चल पड़ते ।

काश कि पेड़, उनके नीचे खड़े होकर 'जय हिंद' कहने से फलों से लद जाते। 


ऐसे बहुत काश हैं... जो हमारे गांव में घूमते हैं... हमारे यहां रोज ऐसे काशों का एक बड़ा झुंड खेतों में चरने जाता है और शाम भूखे वापस लौट आता है। अगली सुबह कुछ और काशों के साथ चरने निकलने की उम्मीद में।
काश कि सबकुछ बस कहने से हो जाता। फसलें कागज पर उपज जातीं। एक पन्ने पर धान लिखने के धान के पौधों की खोखली फलियां, मोटे-मोटे चावलों से भर जातीं। एक पन्नेे पर गेहूं लिख देने से मरियर गेहूं के पौधे दानों से भर जाते। लहलहाते लेकिन फलरहित चने की झाड़ों में भरे दानों वाली फलियां लटक आतीं। काश ऐसा होता।

काश सब भाषण से हो जाता।

किसान और उम्मीद
उम्मीद का मतलब किसान से बेहतर कौन जानता है।
वो बार-बार नाउम्मीद होकर भी उम्मीद करता है। इतना नाउम्मीद होकर तो उम्मीद भी ना उम्मीद जाएगी, पर किसान नहीं होता...

उससे उम्मीद रखने को ना कहें... वो उम्मीदों का महाभारत और बाइबिल है... उम्मीद उसकी धमनियों में बहती है। वो हर रोज उम्मीदों के भरोसे ही जिंदा रहता है।
उसे व्यक्ति से नहीं, भगवान से भी नहीं, व्यवस्था से भी नहीं, उसे तो उम्मीद से भी उम्मीद रहती है कि वो फिर से उम्मीद कर लेगा।
और उम्मीद ही इकलौती चीज हैं जो उसे धोखा नहीं देती। वो हर बार उसके बगल में खड़ी हो जाती है।
तो किसान को उम्मीद मत दिलाइगा, वो जानता है कि उम्मीदें झूठी होती हैं, आश्वासनों और भरोसे का कोई मतलब नहीं होता फिर भी वो उम्मीद करता है।

तो उसे उम्मीद का पाठ और सबक मत पढ़ाईगा। वो उसका प्रोफेसर है।