Thursday, January 28, 2016

एक पिता की पुकार


 
इस संगीत के धुन का लिंक आखिर में है...  
अब इसकी कहानी...
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चीन में एक बांसूरीवाला था, नाम था चो। वो तरह-तरह की धुनें और वाद्य यंत्र बनाकर अपना जीवन चलाता था। उसकी एक बेहद प्यारी बीवी थी - मेई। अपनी बनाई बांसुरियां और रुआन बेचने, वो दूर-दूर के इलाके में जाया करता था। ऐसे ही एक बार, वो अपने पूरे परिवार के साथ, पूरब के एक राजा के दरबार में गया। उसके परिवार में उसकी पत्नी मेई के अलावा, एक किशोरी बेटी भी थी, जिसका नाम था - लियान हुआ। लियान हुआ का मतलब होता है - कमल खिला।

राजा के दरबार में चो की ढेरों बासुरियां और रुआन बिके। राजा उसके हुनर और संगीत से बेहद खुश हुआ और उसकी खूब आवभगत की। कई ईनाम भी दिए। जब चो घर लौटने लगा था तो राजा के एक मंत्री, शिन विन ने उसकी सुरक्षा के लिए कुछ सैनिक भी उसके साथ भेज दिए। घर पहुंचते-पहुंचते रात हो गई, सो वे रास्ते में एक सराय में रुक गए।

सुबह जब चलने की तैयारी होने लगी, तो लियान का कहीं पता ही नहीं था। खलबली मच गई। पूरे सराय और आसपास के गांव का कोना कोना छान मारा गया पर लियान कहीं नहीं मिली। सिपाहियों और सैनिकों ने भी तलाश की लेकिन निराश हुए। कई दिनों की खोज के बाद, निराश चो, पश्चिम के अपने गांव लौट आया। अपनी बेटी के गम में मेई का रो-रोकर बुरा हाल था।

लेकिन लियान गई कहां, कहां गायब हो गई?
चो और मेई ने दोबारा भी वहां जाकर लियान की खोज की, पर उसे नहीं मिलना था, सो वो नहीं मिली। आखिरकार मेई-चो और उनके रिश्तेदारों ने ये मान लिया कि रात में लिआन निकली होगी और उसके साथ कोई हादशा हो गया। शायद अंधरे में किसी जंगली जानवर के हमले के चपेट में आ गई, या नदी में डूब... गई हो। कुछ भी हो, उन्होंने मान लिया कि लियान अब इस दुनिया में नहीं है।
 
पर सच में हुआ क्या था?
हुआ ये था कि लियान जब सो रही थी तो अंधेरे का फायदा उठाकर
कुछ सैनिक, लियान को बांधकर कहीं ले गए... पर कहां... और क्यों? ये बात कोई नहीं जानता था।
लियान के माता-पिता ने उसे खोजना बंद कर दिया और मन मसोस कर जीने लगे।

...लेकिन लियान तो जिंदा थी। पूरब के राजा के दरबार से लौटते वक्त जिस मंत्री शिन विन ने चो को सैन्य सुरक्षा दी थी। दरअसर वो सैनिक, लियान के अपहरण के लिए भेजे गए थे। शिन विन ने दरबार में लियान को देखा था। बूढ़ा और उमरदराज शिन विन, किसी भी सूरत में लियान को पाना चाहता था।
बरसों बीत गए। शिन विन के कब्जे में रहते लियान एक अल्हड़ किशोरी से बेहद खूबसूरत युवती हो गई। इन बरसों में शिन विन ने लियान का दिल जीतने के लिए लाखों जतन किए पर कामयाब नहीं हुआ। वो लियान के मन में अपने लिए कोई भाव नहीं जगा सका।

लियान, जब भी अपने अपहरण की बात सोचती तो वो शिन विन के लिए हिकारत और घिन से भर जाती। उसे अपने गांव, घर और परिवार की बेहद याद आती। वो तड़पकर, छटपटाकर रह जाती। इस तकलीफ से गुजरते, उसने शिन विन को एकदम खारिज कर दिया।

शिन विन तो बरसों से लियान को पाना चाहता था, इसमें नाकामी उसे परेशान किए हुए थी। उस पर से इस उपेक्षा ने उसका हाल और बुरा कर रखा था। ये तिरस्कार उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। सो एक रात उसने खूब शराब पी और लियान के पास कैदखाने पहुंचा, बोला
 -

तुम्हारे गांव के नरक और गरीबी से उठाकर मैं तुम्हें यहां लेकर आया कि तुम इस स्वर्ग में रहो, मुझसे शादी कर तुम्हारा जीवन संवर जाए। पर तुमको मेरे इस अहसान की रत्ती भर भी समझ नहीं है।

इतना कहते हुए उसने छुरा निकाल, लियान पर हमला करने ही वाला था कि पैरों तक जंजीर से बंधी और उसके लोहे के भार से जमीन तक झुकी लियान ने सिर उठाकर शिन विन को देखा। दुधिया चांदनी में उसका चेहरा अदभुत दमक रह था। उसने कहा –
अब जबकि मैं जानती हूं कि मैं यहां तुम्हारी मर्जी और हुक्म से पकड़कर लाई गई हूं। मेरा परिवार, मेरा घर... यहां तुम्हारे पास नहीं, इन पहाड़ों के पश्चिम में है, फिर भी तुमने मुझे एक चिड़िया की तरह कैद कर लिया है कि एकदिन मैं तुमसे प्यार करने लगूंगी। ये कैसे सोच लिया तुमने?”
 
शिन विन ने हमला करने के लिए छुरा तान लिया था, पर लियान बोले जा रही थी-
कैद में मैं नहीं शिन विन, कैद में तो तुम हो, जो खुद अपना गुलाम है, जिसने अपने आपको ही कैद कर रखा है। पर सुनो मैं जबतक यहां हूं, मैं कभी तुमसे प्यार नहीं करूंगी, कभी नहीं।

इन बातों से शिन विन के सिर पर खून सवार हो गया।
अगर तुम मुझे नहीं प्यार करोगी तो किसी को भी नहीं करोगी - गुस्से में चीखते हुए शिन विन ने छुरे से लियान के खूबसूरत मुखरे पर वार किया, लियान के चेहरे का बांया हिस्सा अगले ही पल लहूलुहान हो गया। उसके बाद उसने एक और बार, छुरा ताना, लियान ने वार से बचने के लिए खूब संघर्ष किया। आखिरकार उसे शिन विन का छुरा अपने सीने में धंसता महसूस हुआ। खून की धारा बह गई। खांसी का एक झोंका आया और लियान जमीन पर गिर गई।
 
उसी रात... लियान की मां; मेई घबराकर सोए से उठ बैठी। उसने एक सपना देखा था। मेई को लगा कि उसकी बेटी उसे पुकार रही है, सो वो बदहवास सा घर से बाहर भागी और आसपास जोर-जोर से लियान को पुकारने लगी -
लियान मेरी बेटी! किधर हो मेरे बच्चेतेरी  मां इधर है, अपनी मां के पास आ जाओ!“ वो अपनी बांहे फैलाये बदहवास इधर से उधर भाग रही थी, पर लियान थी कहां जवाब देती। फिर मेई को समझ आया कि वो तो सपना देख रही थी, बस एक सपना। तभी मेई ने देखा कि आसमान में पूरब से पश्चिम की तरफ एक तारा टूटा, जो तेज चमककर धीरे-धीरे ठीक मेई के ऊपर गायब हो गया।  चीन में इसे परी के पदचिह्न’ (a trail of the angels) कहते हैं।

कुछ भी हो लियान की मां को पता था कि उस रात उसकी बेटी उसके पास आई थी और अब वो एक दूसरी दुनिया में है।

अगली सुबह मेई ने रातवाली बात, चो को बताई। चो अपनी बांसुरी लेकर घर से निकल गया। दूर एक पहाड़ की चोटी पर, एक ऊंटे चट्टान पर बैठ, उसने आसमान की तरफ देखा। आंखे छलछला गई उसकी। उसने बांसुरी होठों से लगाई और उसे फूंकने लगा। मेई भी उसके पीछे-पीछे वहां पहुंच गई थी। चो की उंगलिया बांसुरी पर थिरक रही थी। चो अपनी बेटी के लिए एक धुन बजा रहा था, अदभुत धुन। अपनी बेटी लियान हुआ के लिए, जो कमल थी, हमेशा खिला रहनेवाला कमल।


यही धुन है वो 'ट्रेल ऑफ द एंजल्स'... सैंकड़ों बरसों से चीन में पीढ़ी दर पीढ़ी बजती रहनेवाली धुन। आप सुनिए तो एकदम लगेगा कि एक पिता की ही आवाज है, अपनी बेटी के लिए... अब सुन कर देखिए...
धुन सुनने के लिए यहां क्लिक करें...

धुन में किसी पिता की तकलीफ, दर्द, उदासी, बेबसी, आपको साफ-साफ समझ आएगी।

Monday, January 25, 2016

हम तुम्हें मिट्टी में गाड़ देंगे...

 

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान रिजवान, अधिकारियों से माफी मागने लगा कि “...गलती हो गई साहब! उसे पुलिस हिरासत में भेजा गया है।

रिजवान के साथ ठाणे के पास मुंब्रा से जिस मुद्दाबिर मुश्ताक शेख को गिरफ्तार किया गया है, वो भारत में इस संगठन का अमीर (सरगना) है। उसे आईसिस में शामिल होने का जरा भी अफसोस नहीं और भारत के संविधान के प्रति रत्तीभर सम्मान नहीं है।

सीरिया में बैठा कोई शफी अरमान है, जो भारत में आईसिस के लोगों की भर्ती का हैंडलर है। खतरनाक बात ये है कि भारत में भर्ती के लिए ये संगठन, व्यक्ति-आधारित नहीं, तंत्र-आधारित है, एकदम किसी सेना की तरह, अलकायदा से भी उन्नत और बेहतर।

पूछताछ में 33 साल के मुस्ताक शेख ने बड़े अकड़ से माना है कि वो नहीं रहेगा, तो कोई और होगा अमीर (सरगना), पर मिशन तो जारी रहेगा। और ये मिशन है क्या? तो मिशन 'कुछ भी' है, कुछ भी मतलब 'कुछ भी'... अकेले चाकू लेकर किसी विदेशी नागरिक को मार डालने से लेकर, देश में एक साथ कई जगह हमले और  सीरियल ब्लास्ट करने तक...

तय ये है कि इस तरह की सारी घटनाओं की जिम्मेदारी, सीरिया से आईसिस लेगा, वो हर हादसे के बाद बयान जारी करेगा। इस तरह भारत के खिलाफ ये सब करने की कोशिश और पकड़े जाने पर कहना

...कि गलती हो गई साहब!

देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश... और बस ये कह देना
...किगलती हो गई साहब.   ...और बात खत्म हो गई। नहीं क्या?

जिस जमीन पर चलो, उसे ही खून से रंग दो। जिस व्यवस्था से रोटी पाओ, रोजगार पाओ, जिसकी मिट्टी पर अपनी मां की कोख से जन्म लो, जिस हवा में सांस लो, उसे ही अस्थिर कर, कुव्यवस्थित करने की साजिश में शामिल हो जाओ और कह दो...
...कि "गलती हो गई साहब!"

किसी विदेशी को अपने घर में आग लगा देने की सहूलियतें दो, अपने ही लोगों की हत्याएं का षडयंत्र करो, सुनिश्चित करो कि हजारों लोग बेरहम मौत मारे जांए, और फिर कह दो...
...कि "गलती हो गई साहब!"

भारत की अर्थव्यवस्था से, यहां के लोगों, गरीब, अमीर, किसान, कर्मचारियों के पैसों की मदद से, उन्हीं के खिलाफ जंग छेड़, उनकी जान लेने का मिशन चलाओ और कह दो कि...

...कि “गलती हो गई साहब!

क इंसान को बनाने में कुदरत की कितनी योजनाएं लगती हैं! किसने हजार बरसों की चयन प्रक्रिया के बाद, कुदरत एक नए इंसान को रचती है! और तुम उसे बस यूं ही, चिथड़ो में बदलने का इंतजाम करो और कह दो...
...कि “गलती हो गई साहब!

बच्चों से मां-बाप का सहारा छीन लो,
मां-बाप से बच्चों का आसरा छीन लो...
और कहो कि गलती हो गई साहब!

तुम्हारी इस गलती कि वजह से देश के करोड़ों बेकसूर मुसलमान, अपमान और जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर होंगे। अपने ही जमीन पर, अपने ही मुल्क में, उन पर शक किया जाएगा, उन्हें बेइज्जत किया जाएगा। ...और ये तुम्हारे लिए बस "गलती हो गई साहब" कह देने जितना आसान है।

क्या कसूर है उन हामिद, साहिल, तैय्यब, शरीफ, साकिद जैसे करोड़ों लोगों का? जो अपने छोटे बच्चों और बूढ़े मां-बाप के लिए खेतों में, फैक्ट्रियों में, दफ्तरों में हाड़तोड़ काम करते हैं। छोटे-छोटे व्यापार-करोबार में जान खपाए रहते हैं।

क्या कसूर है उनका? जो अपनी बेटियों और बहनों की बेहतर जीवन के लिए, उनकी शादी और पढ़ाई के लिए मशीन बने हुए हैं। उन्हें इस्लाम से मलतब नहीं, उन्हें बस खुदा से मतलब है। तुम्हारी वजह से उनका सिर झुका रहेगा। उन मासूम बच्चों को गालियां दी जाएंगी... उन्हें हिकारत से देखा जाएगा। वो शान से जी नहीं पाएंगे। अपराधबोध से दबे, वो ताउम्र ग्लानि की जिंदगी जिएंगे। वो जानते तक नहीं तुम्हें, पर तुम्हारी करतूत की सजा वे बेकसूर भुगतेंगे।


... ये सब तुम्हारे लिए बस "गलती हो गई" कहने जितना आसान है... बस गलती हो गई साहब!

जिस समाज, जिस देश में तुम्हारे पुरखों का खून पसीना मिला है। उनकी मेहनत-मशक्कत से भी जो देश तैयार हुआ है, उसे किसी गैर के लिए मिटा दो... और कहो...
...कि गलती हो गई साहब!

हजारों बरसों से लड़ते हुए, संघर्ष करते... जो देश, लहूलुहान होकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ है। उसे तुम वापस घुटने पर लाने की साजिश करो, उसे मिट्टी में मिला देना चाहो और कहो...
...कि गलती हो गई साहब!

तुम्हें मालूम नहीं है कि तुम कह क्या रहे हो...
ये गलती नहीं, ये पाप है।
गलती की... सजा हो सकती है, माफी भी...पर पाप का कोई प्रायश्चित नहीं, कोई माफी नहीं। इस धरती के खिलाफ उठी नजर, और कदम को मटियामेट होना पड़ेगा। हर वो आदमी, हर वो विचार जो इसके खिलाफ काम करेगा, उसे खत्म होना पड़ेगा, चाहे उसकी कितनी ही बड़ी फौज क्यों ना हो।

तुम्हारे लिए...
क्लाशनिकोव की गोली के बाद होगा अल्लाह हो अकबर!
हमारे लिए...
अपने खुले सीने के पहले है... बंदे मातरम!“, भारत माता की जय!

ये मां है हमारी... इसके खिलाफ सोचा गया एक भी शब्द... तुम्हें जमीन में गाड़ देने के लिए काफी है। हम करेंगे ऐसा... तमाम मानवाधिकारों की ऐसी तैसी करते, हम करेंगे ऐसा।

...कि ये हमारे पुरखों की जमीन है। इसकी मिट्टी में उनका लहू और पसीना है। इसकी हवा में उनकी सांसों की खुश्बू है... और हमारा धर्म ये है कि हम इसमें, उनकी पहचान अक्षुण्ण रखें... साबूत,  मुकम्मल।