Sunday, July 17, 2016

बदले में जब धोखा हो!

ये देश सदा से धर्मनिरपेक्ष रहा है, उदार। इतना उदार कि विदेशियों का शासन तक स्वीकार करता रहा है। उदारता में उनके रीति रिवाज, मान्यताएं और विश्वास सब अपना लिए इसने। आप इसे कायरता और कमजोरी भी कह सकते हैं। 

 

मैं उन पूरखों को मूर्ख मानता हूं जिन्होंने ऐसे हालात बनने दिए। उन्हीं में से कुछ थे जो अपने ही भाईयों की तरक्की से इतने व्यथित थे कि भाई से बदला लेने के लिए उन्होंने फारस के हमलावरों को आमंत्रण दे दिया। पूरा देश भरा था ऐेसे लोगों से। मुगलो ने बाद में किया होगा, भारत के राजाओं ने उनसे बहुत पहले अपने पिता की हत्या कर राजगद्दियां हथियाने का रिवाज शुरू कर रखा था। वैशाली, उज्जैनी, मगध में पूरा का पूरा राज वंश ऐसा ही करता रहा था। 

 

खैर फारस के हमलावर आ गए। साथ में लाए... सौदागर। ये सौदागर हमलावरों के लिए जरूरी समान यहां पहुंचाते रहे थे। क्योंकि हमलावर एकदम ही कट्टर थे, अपने विश्वास, रहन सहन और खान पान के प्रति बेहद कट्टर, अति-निष्ठ। सौदागरों ने पहले फारस की चीजें यहां पहुंचाई, फिर यहां की चीजें फारस पहुंचाने लगे, फिर दोनों तरफ की चीजों का व्यापार करने लगे। व्यापारियों के साथ अच्छी बात ये है कि वो जहां धंधा देखते हैं वहीं बस जाते हैं। सो सौदागर बस गए। हमलावरों ने भी जुल्म करते हुए कब्जाकर ही रखा था।

 

देश की उदार आवाम तो उदारता में इस तरह सराबोर थी कि उसे अपनी इस उदारता की गलती कभी दिखी ही नहीं। वो दरियां, चटाईयां... बिछाती गईं, हमलावर और सौदागर पैर पसारते गए। वैशाली, अवध, कोशल, जैसे लाखों नाम, मिर्जापुर, रहतमखास, बुल्लेकलां, जैसे नामों में बदल गए। 

 

वही उदारता इस देश के महान लोग फिर से दिखा रहे हैं...

 

हिजबुल मुजाहिद्दीन... आतंकवादी संगठन है... और उसे उसी तरह लिया जाना चाहिए। बुरहान की मौत के बाद, उसने उसकी जगह महमूद गजनवी को कमांडर बनाया है....

 

याद तो होगा इतिहास मे, कौन था असल महमूद गजनवी? सोमनाथ का मंदिर उसी ने लूटा था।

 

हां, ये सरकार मूर्ख अक्कड़ राष्ट्रवादी है, बेवकूफी भरे कड़े कदम उठाती है... कि इसकी ही जरूरत है। 

 

हम तो  गांधी के देश हैं। 'अंहिसा परमोधर्म' के नारा वाला समाज। फिर भी जब-तब हमारे यहां बम क्यों फट जाते हैं? क्यों कोई व्यक्ति AK-47 ले के बेकसूर लोगों पर गोलियां चलाने लगता है?

 

वो इसलिए कि उसे लगता है वो यहां ऐसा कर सकता है। 

 

वो इसलिए कि वोट के लिए सत्तासीन लोगों ने राष्ट्र की मर्यादा बचाने की जरूरत नहीं समझी। और वोट देनेवालें लोगों ने उस औरत को सत्ता दे दी, जिसके पति का कत्ल कर दिया गया इस देश की राजनीति में। कहते हैं नागिन के नाग की हत्या हो तो वो बदला जरूर लेती है। उसका प्रेम इतना गहरा और निष्ठापूर्ण होता है।

 

यहां बदला एक पूरे समाज से लिया जाना था। आखिर दोषी ये समाज ही तो है।

 

पिछले बीस बरसों में क्या हुआ है आतंकवाद से निपटने के लिए इस देश में? 

 

और अगर हुआ है तो ये बढ़ा क्यों है? सच ये हैं कि मिलीजुली सरकार चलाने की जुगत और गुजाड़ में बस सत्ता में बना रहा गया। अपने सहियोगियों को लूट की छूट दी गई और उन्होंने सर्वनाश किया। आप देशभक्ति की बात करते हैं?

 

देश के उत्तर के गन्ना किसानों की अनदेखी कर महाराष्ट्र और विदर्भ के गन्ना किसानों के फायदे के लिए, फैसले लिये गऐ .... कि कृषि मंत्री महाराष्ट्र का था... ये भेदभाव असली राष्ट्र द्रोह है। 

 

एक का पक्ष ले, दूसरे के मन में नफरत भर देना असली देशद्रोह है। अल्पसंख्यकों, दलितों के साथ ये शुरूआत की गई, खूब खेल खेला गया और देश उसकी ही प्रतिक्रिया में जल रहा है। 

  

तो विरोध में इतना उदार मत हो जाईए कि अपना ही हित दिखना बंद हो जाए। देश के हित की कीमत पर आतंकवादियों को न्याय मत दिलाईए। फर्क साफ-साफ करना सीखिए। निरपेक्षता हमेशा वाजिब नहीं है।

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