Monday, January 25, 2016

हम तुम्हें मिट्टी में गाड़ देंगे...

 

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान रिजवान, अधिकारियों से माफी मागने लगा कि “...गलती हो गई साहब! उसे पुलिस हिरासत में भेजा गया है।

रिजवान के साथ ठाणे के पास मुंब्रा से जिस मुद्दाबिर मुश्ताक शेख को गिरफ्तार किया गया है, वो भारत में इस संगठन का अमीर (सरगना) है। उसे आईसिस में शामिल होने का जरा भी अफसोस नहीं और भारत के संविधान के प्रति रत्तीभर सम्मान नहीं है।

सीरिया में बैठा कोई शफी अरमान है, जो भारत में आईसिस के लोगों की भर्ती का हैंडलर है। खतरनाक बात ये है कि भारत में भर्ती के लिए ये संगठन, व्यक्ति-आधारित नहीं, तंत्र-आधारित है, एकदम किसी सेना की तरह, अलकायदा से भी उन्नत और बेहतर।

पूछताछ में 33 साल के मुस्ताक शेख ने बड़े अकड़ से माना है कि वो नहीं रहेगा, तो कोई और होगा अमीर (सरगना), पर मिशन तो जारी रहेगा। और ये मिशन है क्या? तो मिशन 'कुछ भी' है, कुछ भी मतलब 'कुछ भी'... अकेले चाकू लेकर किसी विदेशी नागरिक को मार डालने से लेकर, देश में एक साथ कई जगह हमले और  सीरियल ब्लास्ट करने तक...

तय ये है कि इस तरह की सारी घटनाओं की जिम्मेदारी, सीरिया से आईसिस लेगा, वो हर हादसे के बाद बयान जारी करेगा। इस तरह भारत के खिलाफ ये सब करने की कोशिश और पकड़े जाने पर कहना

...कि गलती हो गई साहब!

देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश... और बस ये कह देना
...किगलती हो गई साहब.   ...और बात खत्म हो गई। नहीं क्या?

जिस जमीन पर चलो, उसे ही खून से रंग दो। जिस व्यवस्था से रोटी पाओ, रोजगार पाओ, जिसकी मिट्टी पर अपनी मां की कोख से जन्म लो, जिस हवा में सांस लो, उसे ही अस्थिर कर, कुव्यवस्थित करने की साजिश में शामिल हो जाओ और कह दो...
...कि "गलती हो गई साहब!"

किसी विदेशी को अपने घर में आग लगा देने की सहूलियतें दो, अपने ही लोगों की हत्याएं का षडयंत्र करो, सुनिश्चित करो कि हजारों लोग बेरहम मौत मारे जांए, और फिर कह दो...
...कि "गलती हो गई साहब!"

भारत की अर्थव्यवस्था से, यहां के लोगों, गरीब, अमीर, किसान, कर्मचारियों के पैसों की मदद से, उन्हीं के खिलाफ जंग छेड़, उनकी जान लेने का मिशन चलाओ और कह दो कि...

...कि “गलती हो गई साहब!

क इंसान को बनाने में कुदरत की कितनी योजनाएं लगती हैं! किसने हजार बरसों की चयन प्रक्रिया के बाद, कुदरत एक नए इंसान को रचती है! और तुम उसे बस यूं ही, चिथड़ो में बदलने का इंतजाम करो और कह दो...
...कि “गलती हो गई साहब!

बच्चों से मां-बाप का सहारा छीन लो,
मां-बाप से बच्चों का आसरा छीन लो...
और कहो कि गलती हो गई साहब!

तुम्हारी इस गलती कि वजह से देश के करोड़ों बेकसूर मुसलमान, अपमान और जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर होंगे। अपने ही जमीन पर, अपने ही मुल्क में, उन पर शक किया जाएगा, उन्हें बेइज्जत किया जाएगा। ...और ये तुम्हारे लिए बस "गलती हो गई साहब" कह देने जितना आसान है।

क्या कसूर है उन हामिद, साहिल, तैय्यब, शरीफ, साकिद जैसे करोड़ों लोगों का? जो अपने छोटे बच्चों और बूढ़े मां-बाप के लिए खेतों में, फैक्ट्रियों में, दफ्तरों में हाड़तोड़ काम करते हैं। छोटे-छोटे व्यापार-करोबार में जान खपाए रहते हैं।

क्या कसूर है उनका? जो अपनी बेटियों और बहनों की बेहतर जीवन के लिए, उनकी शादी और पढ़ाई के लिए मशीन बने हुए हैं। उन्हें इस्लाम से मलतब नहीं, उन्हें बस खुदा से मतलब है। तुम्हारी वजह से उनका सिर झुका रहेगा। उन मासूम बच्चों को गालियां दी जाएंगी... उन्हें हिकारत से देखा जाएगा। वो शान से जी नहीं पाएंगे। अपराधबोध से दबे, वो ताउम्र ग्लानि की जिंदगी जिएंगे। वो जानते तक नहीं तुम्हें, पर तुम्हारी करतूत की सजा वे बेकसूर भुगतेंगे।


... ये सब तुम्हारे लिए बस "गलती हो गई" कहने जितना आसान है... बस गलती हो गई साहब!

जिस समाज, जिस देश में तुम्हारे पुरखों का खून पसीना मिला है। उनकी मेहनत-मशक्कत से भी जो देश तैयार हुआ है, उसे किसी गैर के लिए मिटा दो... और कहो...
...कि गलती हो गई साहब!

हजारों बरसों से लड़ते हुए, संघर्ष करते... जो देश, लहूलुहान होकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ है। उसे तुम वापस घुटने पर लाने की साजिश करो, उसे मिट्टी में मिला देना चाहो और कहो...
...कि गलती हो गई साहब!

तुम्हें मालूम नहीं है कि तुम कह क्या रहे हो...
ये गलती नहीं, ये पाप है।
गलती की... सजा हो सकती है, माफी भी...पर पाप का कोई प्रायश्चित नहीं, कोई माफी नहीं। इस धरती के खिलाफ उठी नजर, और कदम को मटियामेट होना पड़ेगा। हर वो आदमी, हर वो विचार जो इसके खिलाफ काम करेगा, उसे खत्म होना पड़ेगा, चाहे उसकी कितनी ही बड़ी फौज क्यों ना हो।

तुम्हारे लिए...
क्लाशनिकोव की गोली के बाद होगा अल्लाह हो अकबर!
हमारे लिए...
अपने खुले सीने के पहले है... बंदे मातरम!“, भारत माता की जय!

ये मां है हमारी... इसके खिलाफ सोचा गया एक भी शब्द... तुम्हें जमीन में गाड़ देने के लिए काफी है। हम करेंगे ऐसा... तमाम मानवाधिकारों की ऐसी तैसी करते, हम करेंगे ऐसा।

...कि ये हमारे पुरखों की जमीन है। इसकी मिट्टी में उनका लहू और पसीना है। इसकी हवा में उनकी सांसों की खुश्बू है... और हमारा धर्म ये है कि हम इसमें, उनकी पहचान अक्षुण्ण रखें... साबूत,  मुकम्मल।

 
 

 

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