Wednesday, September 26, 2018

परिचय अपरिचय

हैलो!... के बाद फौरन उसने कहा कि "किसी अजनबी पुरुष से बात करनी थी, तो सोचा, आप सबसे सुरक्षित व्यक्ति हैं।" 

मैं मुस्कुराया कि "लेकिन ये तो गलती हो गयी आपसे, मैं सुरक्षित जरूर संभव हूं, पर 'अजनबी' तो कभी नहीं पा सकेगा मुझे कोई। चाहे कोई कितना नया हो, मैं सदा ही उसको परिचित सा लगूंगा। आपको भी नहीं लगूंगा अपरिचित।"

----- अब आगे अपनी बात...

हां! मेरे लिए कुछ भी नया नहीं, ना ही मैं हूं किसी के लिए भी नया। इसका विचित्र असर है... कि मैं प्रभावित करने के, और प्रभावित होने के, प्रयासों से अप्रभावी रह जाया करता हूं।

बरसों पहले... जब विचार उठा कि विवाह होना चाहिए मेरा, तो ख्याल आया कि एक प्रस्ताव हो सकता है एक लड़की को। सो उस लड़की के परिवार के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति से बात की। जिज्ञासा, बस यही की मैंने; कि क्या ऐसा विचार संभव है। ना! ना! उस लड़की से मेरी कोई गहरी पहचान नहीं थी। ना ही कोई पसंद थी, पर ऐसा भी नहीं था कि एकदम अपरिचित थी वो।

किसी विवाह में, एक स्त्री का होना जरूरी है। अब खंभे या पेड़ से तो विवाह हो नहीं सकता! तो उस वक्त, जो भी ऐसा पात्र लगा, सबका चौखट खटखटाना था। ये भी, उनमें से एक दरवाजा था।

मेरी ये अनौपचारिकता, या परिचय भाव ये मेरा, मेरे ही विरुद्ध हो गया। संभावना की जिज्ञासा या संभाव्ययता की तलाश की एक सहज कोशिश के चलते...  मैं छिछोर, चरित्रहीन और बेगैरत समझा गया। बस एक औपचारिक संबंध की संभावना की बात पूछ लेने भर से, मैं बाजारू समझ लिया गया।

शायद अनौपचारिक परिचित लोग, अप्रभावी और प्रभावहीन दोनों होते हैं। 'शायद' इसलिए कह रहा कि अपनी बात तो मैं पुख्ता तौर पर कह सकता हूं, पर बाकियों के बारे में संदिग्धता वाजिब है। तो अपने अनौपचारिक परिचय के चलते अप्रभावी हुआ मैं, आगे बढ़ गया.. पर ये समझ नहीं पाया कि चूक कहां हुई।

अपरिचय जरूरी है क्या? अनजान दिखना या होना अनिवार्य है क्या? हर व्यक्ति, एक दूसरे से ऐसा ही वर्ताब करता है... अहंकारभरा अपरिचित जैसा व्यवहार। पर ये क्यों जरूरी है?

शायद इसलिए कि परिचय का ध्येय ही यहां, शोषण होता है। हर परिचय ही, कुछ पाने के उद्देश्य से होता है। जो, कुछ पाने का मकसद नहीं हो, तो व्यक्ति; परिचय करता ही नहीं। हर चीज, हर तत्व, हर कण के प्रति... मनुष्य का यही व्यवहार है। 

किसी पौधे से कोई लाभ नहीं हो तो मानव उसके बारे में जानना तक नहीं चाहता। कोई पत्थर, अगर भविष्य नहीं बदलता हो, तो उसकी तरफ देखना तक... जरूरी नहीं समझता।

पर प्रकृति तो ऐसी नहीं है।
जीवन का ध्येय तो... उन तारों के बारे में जानना है, जिससे हमारा कोई लाभ नहीं। जिंदगी का मकसद तो, उन पौधों और जीवों से भी दोस्ती है, जो हमारा भोजन नहीं हैं। 

जीवन तो व्यापक है...फैला हुआ... क्षैैैतिज। वो अंतरिक्ष से उतरा है, पता नहीं कहां जाने के लिए। जीवन की यात्रा का ये विस्तार, इसी से है संभव है कि यहां सब कोई, सबकुछ से परिचित हैं। हमारी कोशिशकाओं के केंद्र में, जो धातु के अवयव हैं... वो तारों से आये हैं। आकाश की तरफ देखते हुए, अगर हमको वहां सबकुछ, चिरकाल से परिचित नहीं दीखता तो हमारे बदन के निर्जीव ढांचे में कहीं, जीवन की कमी है। कसर है। 

अपरिचय, जीवनहीनता का परिचायक है। इसी से अहंकार सदैव अपरिचय भरा होता है, और इसी से वो जीवनरहित भी होता है। मेरी आस्था; जीवन में है, उसकी व्यापकता में है तो मुझे कुछ भी अपरिचित नहीं लगता। ना ही मैं किसी को अनजाना लगता हूं।

मैं सब जानता हूं! सबकुछ
ये अहंकार नहीं, सरलता है। विनम्रता है ये अनुभूति कि सबकुछ ही मेरा है, जैसे मैं सबका हूं।

लेकिन संसार में बहुत अहंकार है और बहुत लोग भी हैं... जिनके लिए अपरिचय अस्त्र है... हथियार, सत्ता का हथियार। और जिनके लिए परिचय, शोषण का ध्येय है।

अजीब है, कि किसी परिचित का शोषण, मुझसे नहीं हो पाता और कोई मुझसे परिचय बढ़ाकर मेरा शोषण करना चाहे तो धोखा और दगा जैसा अनुभव करता हूं। उससे विमुख हो जाता हूं। दुर्भाग्य ये है कि ये बातें मुझको व्यर्थ और अनुपयोगी बनातीं हैं।

तो उसने कहा कि मुझे किसी अपरिचित से बात करनी थी...
लेकिन बात ये है कि मैं किसी का भी अपरिचित हूं ही नहीं। उससे भी अजीब बात ये है कि जिनसे भी मेरा जितना परिचय होता है, वे मुझको उतना ही अपरिचित लगते हैं। अगर किसी को मैं एकदम आत्म परिचित पाना चाहता हूं, तो उससे अनजान हो लेता हूं। जितना अनजान होता हूं, वो उतना ही मेरा परिचित होता है। अजीब है ना, पर ऐसा ही है।

अनुभव ये पाया है कि गहन परिचित तबतक वही रहा किया, जिससे जबतक परिचय नहीं था। ज्यों ही उससे गहरा परिचय हुआ कि वो एकदम अपरिचित हो गया। 

ऐसा हो सकता है कि ऐसा होता है। ये उल्लू जैसी स्थिति है कि रोशनी होते ही, वो अंधा हो तो जाता है। तो वैसे ही... एकदम संभव है अपरिचय से भी परिचित रहना और गहन परिचय होते ही हो जाना अपरिचित।

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