Monday, April 23, 2018

सटाक! सटाक!

मित्र संजीव सिन्हा, श्रधेय फादर के. टी. थॉमस के साथ सेल्फी लेते

"ईसाई मिशनरीज देश को खंडित कर रहे हैं" महान भारतीय राष्ट्रवादी राजनीतिक पार्टी के एक सासंद ने दो दिन पहले कहा। अजीब है कि फिर भी दाखिलों के वक्त, देशभर में लोग, मिशनरीज के स्कूलों को ही प्राथमिकता देते हैं। सबसे पहले लाईन वहीं लगायी जाती है।

1979-80 था। गांव के मिड्ल स्कूल में सातवीं में पढ़ता था मैं। उस साल जनवरी में पास होकर पास के कस्बे के हाईस्कूल में आठवीं में दाखिला होना था।

पांचवी से ही बढ़िया समझे गये तरह-तरह के स्कूलों - नेतरहाट, सैनिक स्कूल, रामकृष्ण मिशन स्कूल... में दाखिले के इम्तिहान दिलाये जाते रहे। पर कहीं कुछ भीषण अयोग्यता थी मेरी। पांचवी से आठवी में जाने का वक्त आ गया और किसी अच्छी जगह दाखिला नही हो सका मेरा। ए कदम ही मूर्ख और बेकार विद्यार्थी था मैं। अभ्यास से सीखी गयी किसी भी विद्या में, आजतक यही दशा है मेरी। 

जब आठवीं में जाने का वक्त था, तो उत्तर बिहार के सबसे बढ़िया स्कूल  के.आर. हाई स्कूल, बेतिया में दाखिले के लिए ले गये बाबूजी। सांतवीं में दाखिल कराने का इम्तिहान था। गांव के मास्टर और स्विडन और कनाडा के फादरियों की अपेक्षाओं में फर्क तो होगा ही। सो प्रश्नपत्र अंग्रेजी में था। हम तो छठी में ABCD ही लिखना सीखे थे। कुछ समझ नहीं आया। 

परीक्षा खत्म होने पर खूब रोया मैं, उसी स्कूल की कैंटीन में बैठ। क्या स्वादिष्ट आलूचाप और पकौड़िया थीं उसकी। बाबूजी और दादा (बड़े भैया) साथ थे। दादा ने मुझे रोते से चुप कराते हुए, रोने का कारण पूछा तो मैंने निराशा से सिसकते हुए कहा, कि यहां मेरा एडमिशन नहीं हो सकेगा।

संजीव सिन्हा, श्रधेय फादर के. टी. थॉमस के साथ 
ये स्कूल मुझे बहुत पसंद आया था और मेरी इच्छा यहीं पढ़ने की थी। पर दाखिला संभव नहीं था। 


बाबूजी के एक मित्र थे, पश्चिमी चंपारण (बेतिया) जिले के पुलिस के खुफिया विभाग के डीएसपी।उनको साथ ले, बाबूजी ने उस वक्त के हेडमास्टर, फादर के. टी. थॉमस से बात की। फादर ने साफ मना कर दिया कि बहुत ही कमजोर है... नहीं पढ़ सकेगा। फिर भी हठ करने पर फादर ने सुझाव दिया कि पांचवी में दाखिला करा दीजिए... सांतवी तक आते आते ठीक हो जायेगा। 

मुझे रोते देख बाबूजी और दादा(बड़े भैया) को ममता हो आयी थी। वो मेरा दाखिला उस स्कूल में करा ही देना चाहते थे। इस तरह आठवीं में जानेवाला बच्चा, पांचवी में चला गया। इसका दुष्प्रभाव या कुप्रभाव तो बहुत हुआ... पर वो सुप्रभाव से ज्यादा ना हो सका।

एक लड़का था,  पांचवी में हमसे सीनियर था, लेकिन छठी में फेल कर शायद हमारा सहपाठी हो गया, नरेंद्र ध्वज सिंह। उससे बेतिया शहर में, डीक्रूज सर के हॉस्टल में रहने के चलते, जानपहचान सी थी। स्कूल का अपना बोर्डिंग था, लेकिन सातवीं कक्षा से ही उसमें रहने की सुविधा थी सो। स्कूल के बाहर, कई हॉस्टल थे। मैं डीक्रूज सर के हॉस्टल में रहता था। नरेंद्र ध्वज सिंह का वहां आना जाना था। इसी के चलते उससे परिचय था।

आज के बच्चे प्रैंक खेलते हैं, लेकिन शायद मैं तब भी अपने वक्त से आगे था। एक दिन मैंने एक पन्ने पर लिखा...
"मुझे क्यों उठाया तूने? 
कितना बढ़िया जमीन पर पड़ा था। 
शर्म नहीं आती तुम्हें,
किसी भी स्थिर चीज को हिलाते? 
मैं एक सादा पन्ना... 
कितनी शांति से सोया था। 
तेरी जिज्ञासा ने खलल डाल दी। 
मुझे उठाकार साबित किया तुमने 
कि तू एकदम गधा है।"

फिर इस पन्ने को मोड़ जेब में रखा और छोटे टिफिन के लिए निकल गया। हमारे स्कूल में, दो छोटे और एक बड़ा, तीन टिफिन होते थे। मेरी योजना थी कि पन्ने को छुट्टी के वक्त कहीं गिरा कर, छुपकर देखूंगा कि इसे पढ़नेवाले की क्या प्रतिक्रिया होती है।

लेकिन होना तो हादसा था। टिफिन में वो पन्ना मेरी जेब से स्कूल के बरामदे में गिर गया, ठीक मेरी छठी कक्षा के सामने ही। मेरे पीछे नरेद्र ध्वज सिंह आ रहा था। उसने पन्ना उठाया, पढ़ा और सीधा हेडमास्टर के पास चला गया।

हेडमास्टर थे वही श्रधेय फादर के. टी. थॉमस। उन्होंने नरेंद्र ध्वज से मुझे बुलाने को कहा। और खुद अपने दफ्तर से बाहर बरामदे में आ गये। नरेंद्र मुस्कुराता हुआ मुझे बुलाने आया। मैं घटना से अनजान निकल कर फादर के सामने खड़ा हो गया। फादर के एक हाथ में एक छड़ी थी, और दूसरे में वो पन्ना। उन्होंने पन्ना मेरी तरफ बढा़ते हुए पूछा - "ये तुमने लिखा है? मैंने ईमानदारी से स्वीकार ली गलती। लेकिन "क्यों लिखा ?" - उनके इस सवाल का जवाब, मेरे पास नहीं था। अगला कमांड था हाथ निकालो... सटाक! सटाक! सटाक! लगातार सात छड़ी पड़ी थी हथेली पर... प्राण निकल गये थे।

श्रधेय फादर के. टी. थॉमस 
आदरणीय फादर के. टी. थॉमम का उसी साल ट्रांसफर हो गया। लेकिन उन्होंने नरेंद्र ध्वज सिंह से मेरा परिचय करा दिया। स्कूल के अनुशासन और छात्रों की समझदारी और अपनी समझ का बड़ा फर्क बता गये।

के. आर. एलमुनाई, पुराने छात्रों के मिलनोत्सव में 38 साल बाद फादर के.टी. थॉमस का आना हुआ। मैं इस सम्मिलन समरोह में जा ना सका लेकिन मित्र संजीव सिन्हा ने जब फादर की तस्वीरे साझा की, तो लगा जैसे अतीत अचानक सामने आ खड़ा हुआ हो। और जैसे कल ही की बात हो। 

फादर को देखते पहली प्रतिक्रिया थी - कंपकंपी आ गयी, डर गया... एकदम वही अनुभूति, ठीक जैसे कोई मिड्ल स्कूल का छात्र अपने हेडमास्टर और उनकी छड़ी से डरा करता था।

अनुशासन बहुत महान सबक है, और वो जीवन में बहुत से लोगों के योगदान से आता है। आदरणीय फादर  के.टी. थॉमस उनमें एक हैं... बेहद अहम। जिन्होंने गंवार देहाती, कृष्णानंद को तमीज और संयम का सबक दिया। जिनकी छड़ी से ये सबक मिला कि लापरवाही नहीं चलेगी, और मजाक बेहद उच्च बौधिकता की बात है। 

आज पाता हूं कि फादर का दिया सबक कितना अहम था। आज पूरा देश नरेंद्र ध्वज सिहों से भरा पड़ा है भसड़ मची है, उनकी। 

अगर फादर के. टी. थॉमस, के.आर. हाई स्कूल में मुझे दाखिला नहीं लेते तो मैं एकदम कुछ और ही होता। जो हुआ या हो सका वो उससे तो एकदम अलग और कमतर ही होता।

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